जब भारत में एक नागरिकता है सबकी

गीत✍️ - उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

जब भारत में एक नागरिकता है सबकी
यूसीसी पर भी होगी अब खुलकर बात 
जले- भुने जो बैठे हैं उनके हित में क्या
सद्भावों का भी करना होगा आयात।
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राष्ट्र धर्म का पालन करना सीखा हमने 
उसके लिए करें प्राणों का भी बलिदान 
 सहनशीलता कब तक अपने आंसू पोंछे
नहीं सहेंगे भारत माता का अपमान 
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रहा सैकड़ों वर्ष गुलामी का जीवन जब
मानवता ने झेले थे कितने आघात 
जले -भुने जो बैठे हैं उनके हित में क्या
सद्भावों का भी करना होगा आयात।
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लोक- लाज की रक्षा हेतु दिखाया जौहर
अग्नि कुंड में कूदीं कर ईश्वर का ध्यान
माता, बहन, बेटियां तो अपनी ही थीं वे
आज न्याय के लिए चलाएंगे अभियान
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संविधान के अनुच्छेद चौबालिस को तो
लागू करना नहीं समस्या है नवजात 
जले-भुने जो बैठे हैं उनके हित में क्या 
सद्भावों का भी करना होगा आयात।
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घर के भीतर या बाहर की कूटिल नीति जो 
उसको अच्छी तरह समझते हैं अब लोग 
निर्देशक जो तत्व नीति के रहें सामने
मानेगा क्यों नहीं हमारा विधि आयोग 
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'सत्यमेव जयते' को डिगा न पाए कोई 
चाहे कितना भी हो जाए उल्कापात 
जले- भुने जो बैठे हैं उनके हित में क्या
सद्भावों का भी करना होगा आयात।
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साथ-साथ जब रहते हैं सब लोग यहां पर 
अलग-अलग कानून एकता में व्यवधान
सोचें समझें सदा प्रेम का दीप जलाएं 
जननी जन्मभूमि का हो सच्चा सम्मान
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जन्म- जन्म का साथ निभाने की खातिर ही
लेते रहे अग्नि के फेरे हम तो सात
जले-भुने जो बैठे हैं उनके हित में क्या
सद्भावों का भी करना होगा आयात।
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 रचनाकार-✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
 'कुमुद-निवास'
 बरेली (उत्तर प्रदेश)
 मोबा.- 98379 44187

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2 Comments

Wahhhh बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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